सप्तऋषियों में से एक है ऋषि भारद्वाज, वे कौन हैं आईये जानते हैं उनके बारे में। नमस्कार दोस्तों, धरम संस्कृति में आपका स्वागत है। आज हम बात करेंगे तीसरे सप्तऋषि भरद्वाज के बारे में।और उनसे जुडी 7 बातें जो आप नहीं जानते। तो दोस्तों, शुरू करते हैं भरद्वाज ऋषि के बारे में 7 बातें:
1) वैदिक ऋषियों में भारद्वाज-ऋषि का उच्च स्थान है। भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता का नाम था ममता। लेकिन पैदा होते ही माता-पिता में इस बात को लेकर विवाद हो गया कि इस संतान का पालन-पोषण कौन करेगा? दोनों ने एक दूसरे से कहा भरद्वाजमिमम् यानी तुम इसे संभालो। बस, तभी से इनका नाम भरद्वाज पड़ा, लेकिन इन्होंने अपनी तपस्या के बल पर इसी नाम को अमर कर दिया। बाद में राजकुल में इनका लालन-पालन हुआ। वैशाली नरेश मरुत्त ने इनको पाला-पोसा। पुराणों में कहा गया है कि मरुत्त देवता ने इनका पालन-पोषण किया।
2) भरद्वाज विदथ राजा भरत के कुल पुरोहित थे। दुष्यन्त पुत्र राजा भरत ने अपना राज पाठ इन्हीं भारद्वाज को सौंपा तथा खुद जंगल में जाकर भक्ति करने लगा।
3) तैत्तिरीय ब्राह्मण नामक ग्रंथ में कथा है- भरद्वाज ने इन्द्र को अपनी तपस्या से प्रसन्न कर सौ-सौ वर्ष के तीन जन्मों का वरदान मांगा था। दरअसल भरद्वाज वेदों का अध्ययन करना चाहते थे, लेकिन समय की कमी के कारण ऐसा न कर सके। तब इन्द्र को तप से प्रसन्न किया। कहते हैं तीन जन्मों के बाद भी ये वेदों का पूरी तरह से ज्ञान प्राप्त नहीं कर सके। तब पुन: इन्द्र से चौथा जन्म भी मांगा। इस बार इन्द्र ने एक उपाय बताया। कहा सवित्राग्रिचयन यज्ञ करो। इन्होंने ऐसा ही किया तब कहीं जाकर इनकी जिज्ञासा पूर्ण हो सकी।
4) रामायण के अनुसार दंडकारण्य में जाते समय श्रीराम महर्षि भरद्वाज के आश्रम गए थे। श्रीराम से इन्होंने अपने आश्रम में ही रहने का अनुरोध किया था, लेकिन श्रीराम ने इस प्रस्ताव को नहीं माना। तब चित्रकूट में श्रीराम के लिए व्यवस्था की थी। रावण का वध करने के बाद भी श्रीराम इनके आश्रम आए थे।
5) भारद्वाज का विवाह सुशीला से हुआ था और उनका एक पुत्र था गर्ग और एक पुत्री देववर्षिणि । एक और इतिहासकार का मानना है की भारद्वाज जी की दो पुत्रिया थी इलविदा और कात्यायनी , जिन्होंने क्रमशय विश्रवा ऋषि और यज्ञावल्क्य से विवाह किया। विष्णु पुराण की माने तो भरद्वाज जी एक अप्सरा पर मोहित हो गए थे जिसका नाम घृताची था ,और उससे एक परम योद्धा ब्राह्मण पैदा हुए थे द्रोणाचार्य। इनकी पालक माता का नाम द्रोणी था और ये पत्ते के दोने पर पैदा हुए थे, इन दो करने से द्रोण कहलाय .
6)ॠग्वेद के छठे मण्डल के द्रष्टा भारद्वाज ऋषि हैं। इस मण्डल में भारद्वाज के 765 मन्त्र हैं। अथर्ववेद में भी भारद्वाज के 23 मन्त्र मिलते हैं। ‘भारद्वाज-स्मृति’ एवं ‘भारद्वाज-संहिता’ के रचनाकार भी ऋषि भारद्वाज ही थे।
7) ऋषि भारद्वाज ने ‘यन्त्र-सर्वस्व’ नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ का कुछ भाग स्वामी ब्रह्ममुनि ने ‘विमान-शास्त्र’ के नाम से प्रकाशित कराया है। भारद्वाज ने ‘विमान’ की परिभाषा इस प्रकार की है-
वेग-संयत् विमानो अण्डजानाम् ( पक्षियों के समान वेग होने के कारण इसे ‘विमान’ कहते हैं।)
इस ग्रन्थ में विमानचालक (पाइलॉट) के लिये ३२ रहस्यों की जानकारी आवश्यक बतायी गयी है। इन रहस्यों को जान लेने के बाद ही पाइलॉट विमान चलाने का अधिकारी हो सकता है।
तो दोस्तों, ये थी वो ७ बातें भारद्वाज ऋषि के बारे में, उम्मीद करता हूँ की आपको पसंद आयी होंगी।